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किसान अप्रैल माह में उगाई जाने वाली इन फसलों से कर पाएंगे अच्छी आय

किसान अप्रैल माह में उगाई जाने वाली इन फसलों से कर पाएंगे अच्छी आय

आज हम बात करने वाले हैं, अप्रैल माह में उगाई जाने वाली अच्छी फसलों के बारे में जिनसे किसानों को अच्छी आय हो सके। जैसा कि हम जानते हैं, कि अप्रैल माह तक तकरीबन समस्त रबी फसलें कट जाती हैं। 

किसान अपनी पैदावार को भी प्रबंधन करके मंडी पहुंचाने लग जाते हैं। अब जायद सीजन की फसलें बोई जानी हैं। ये फसलें मुनाफे के सहित मृदा की उपजाऊ शक्ति को भी बढ़ा देती हैं।

अप्रैल माह में उगाई जाने वाली फसलें

रबी फसलों की कटाई और खरीफ सीजन से पूर्व कुछ महीनों के मध्य में खाली बच जाते हैं, जिसे जायद सीजन भी कहा जाता है। इसके दौरान बहुत सी तिलहनी एवं दलहनी फसलों की बुवाई की जाती है, जो धान मक्का की खेती से पूर्व ही तैयार हो जाती है। 

जायद सीजन के तहत खास बागवानी फसलों की भी बुवाई की जाती है। इसके अतिरिक्त अधिकाँश किसान मृदा की उर्वरक क्षमता को बढ़ाने हेतु जायद सीजन में लोबिया, मूंग और ढेंचा का उत्पादन भी किया जाता है। इससे मृदा में नाइट्रोजन का स्तर काफी बढ़ जाता है।

बुवाई से पहले बीजोपचार अत्यंत जरुरी है

रबी फसलों की कटाई के उपरांत सर्वप्रथम खेत में गहरी जुताई कर खेत को तैयार कर लें। जायद सीजन की फसलों की बुवाई करने से पूर्व मृदा की जांच जरूर करवा लें। 

क्योंकि मृदा परिक्षण से समुचित मात्रा में खाद-उर्वरक का इस्तेमाल करने की राहत मिल सकेगी। गैर जरुरी चीजों पर होने वाले खर्चों से छुटकारा मिल पाएगा। हर फसल सीजन के उपरांत मृदा परीक्षण करवाने से इसकी खामियों की भी जानकारी मिल जाती है। जिनका समयानुसार उपचार किया जा सकता है।

बेबी कॉर्न और साठा मक्का का उत्पादन

यह समय साठी मक्का और बेबी कॉर्न की खेती के लिए उपयुक्त है। इन दोनों फसलों को पककर तैयार होने में लगभग 60 से 70 दिन का समय लगता है। फिर कटाई के उपरांत सुगमता से धान की बिजाई का कार्य भी किया जा सकता है।

वर्तमान में बेबी कॉर्न भी काफी चलन में है। बतादें, कि इस मक्का को कच्चा ही बेचा जा सकता है। इतना ही नही भोजनालयों में भी बेबी कॉर्न के पकौड़े, सूप, सलाद, सब्जी, अचार आदि बेहद प्रसिद्ध हैं। 

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बागवानी फसलों की बुवाई

अप्रैल माह में किसान भाई बागवानी फसलों का उत्पादन करके अच्छी आय कर सकते हैं। अप्रैल माह करेला, तोरई, बैंगन, लौकी और भिंडी की खेती के लिए काफी अच्छा होता है। 

बेमौसम बारिश की मार से जायद सीजन की फसलों को संरक्षित करने के लिए किसान भाई ग्रीन हाउस, लो टनल और पॉलीहाउस की व्यवस्था कर लें। इन संरक्षित ढांचों को तैयार करने के लिए राज्य सरकारें किसानों को अनुदान भी उपलब्ध करवाती हैं।

उड़द की बुवाई

अप्रैल माह उड़द की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है। दरअसल, जलभराव वाले क्षेत्रों में इसका उत्पादन करने से बचना चाहिए। उड़द का उत्पादन करने के लिए प्रति एकड़ 6-8 किलो बीजदर का उपयोग करें। 

साथ ही, किसान अपने खेत में उड़द की बुवाई करने से पूर्व थीरम अथवा ट्राइकोडर्मा से उपचारित जरूर कर लें।

अरहर की बुवाई

किसान दलहन उत्पादन के संबंध में आत्मनिर्भर होने के तरफ अग्रसर होने के लिए अरहर की फसल उगा सकते हैं। जल निकासी वाली मृदा में कतारों में अरहर का बीजारोपण किया जाता है। 

यह फसल 60 से 90 दिनों के समयांतराल में पककर कटाई हेतु तैयार हो जाती है। अगर आप चाहें, तो अरहर की कम समयावधि वाली किस्मों का बीजारोपण कर जल्दी उत्पादन हांसिल कर सकते हैं।

सोयाबीन की बुवाई

अप्रैल माह में बोई जाने वाली सोयाबीन की फसल में संक्रमण और बीमारियों की आशंका काफी कम ही रहती है। यह फसल वातावरण में नाइट्रोजन स्थिरीकरण का कार्य करती है। 

जलभराव वाले स्थानों में सोयाबीन की बुवाई करना ठीक नहीं होता है। सोयाबीन की बेहतरीन पैदावार लेने के लिए बुवाई से पूर्व खेत की 3 गहरी जुताईयां करना काफी अच्छा माना जाता है। 

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मूँगफली की बुवाई

अप्रैल माह के आखिरी सप्ताह तक मतलब कि गेहूं की कटाई के शीघ्र उपरांत मूंगफली की फसल का बीजारोपण किया जा सकता है। यह फसल अगस्त-सितंबर तक पककर तैयार हो सकती है। 

परंतु, जलनिकासी वाले क्षेत्रों में ही मूंगफली की बुवाई करना उचित रहता है। किसान मूँगफली का बेहतर उत्पादन लेने हेतु हल्की दोमट मिट्टी में बीजोपचार के उपरांत ही मूंगफली के दानों की खेत में बिजाई कर दें।

ढेंचा की बुवाई

खरीफ सीजन की धान-मक्का की बुवाई से पूर्व किसान बाई ढेंचा मतलब कि हरी खाद की फसल उठा सकते हैं। इससे खाद-उर्वरकों पर खर्च किए जाने वाली धनराशि को सुगमता से बचाया जा सकता है। 

ढेंचा की फसल 45 दिन के समयांतराल में लगभग 5 से 6 सिंचाईयों में पककर तैयार हो जाती है। अब इसके उपरांत धान का उत्पादन करने पर फसलीय गुणवत्ता एवं पैदावार बेहतरीन मिलती है। 

गेहूं की कटाई करने के उपरांत कृषि वैज्ञानिकों से जानकारी एवं अपने स्थान-जलवायु के मुताबिक गन्ना एवं कपास की बिजाई भी कर सकते हैं। 

साथ ही, फसलीय कीट एवं रोगिक संक्रमण की आशंकाओं को समाप्त करने हेतु पूर्व से ही बीजोपचार पर कार्य जरूर कर लें।

जानें रबी और खरीफ सीजन में कटाई के आधार पर क्या अंतर है

जानें रबी और खरीफ सीजन में कटाई के आधार पर क्या अंतर है

रबी की फसल सर्द‍ियों के सीजन में अक्टूबर से दिसंबर के बीच लगाई जाती है। रबी की फसलों में गेंहू, आलू, मटर, चना, अलसी, सरसो एवं जौं प्रमुख तौर पर शाम‍िल हैं। खरीफ की फसलों में सोयाबीन, कपास, चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, मूंग, मूंगफली और गन्ना समेत अन्य शामिल हैं। भारत में अनेक फसलों का उत्पादन होता है। यहां की ज्यादातर आबादी कृषि क्षेत्र से ही जुड़ी हुई है। इस वजह से ही भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है। भारत में ऋतुओं पर आधारित रबी एवं खरीफ फसलें दो तरह की फसलें हैं। प्रत्येक फसल के उत्पादन का एक खास मौसम होता है। इस लेख के अंदर हम आपको रबी और खरीफ की फसल में अंतराल बता रहे हैं।

रबी की फसल

रबी की फसल सर्द‍ियों के मौसम में अक्टूबर से दिसंबर तक बोई जाती है। रबी की फसलों में चना, अलसी, सरसो, जौं, गेंहू, आलू और मटर विशेष रूप से शम्मिलित हैं। इस मौसम में गेंहू की सबसे ज्यादा खेती की जाती है। अक्टूबर-नवंबर के महीने में इस फसल के बीजों की बिजाई के लिए मिट्टी में डाल दिया जाता है। इन फसलों को कम तापमान के साथ खुश्क वातावरण की जरूरत पड़ती है। मानसून समाप्त होने के उपरांत मिट्टी में पानी की भरपूर मात्रा होती है। ऐसी स्थिति में पूरी सर्दियों में इस फसल को पैदा करने के लिए अच्छी मात्रा में पानी उपलब्ध रहता है। हालांकि, नवंबर और दिसंबर में होने वाली वर्षा से इस फसल को बेहद क्षति पहुंचती है। ये भी पढ़े: रबी सीजन की फसलों की बुवाई से पहले जान लें ये बात, नहीं तो पछताओगे

रबी की फसल की कटाई कब की जाती है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि रबी की फसल की कटाई फरवरी माह के आखिरी सप्ताह से लेकर मार्च के आखिरी सप्ताह तक की जाती है। दरअसल, इस मौसम में परिवर्तन होना प्रारंभ हो जाता है। साथ ही, तापमान में भी बढ़ोत्तरी होने लगती है। फसल की कटाई के पश्चात इसको बेहतर ढ़ंग से सुखाया जाता है। उसके उपरांत इस फसल की हाथ से मड़ाई की जाती है।

खरीफ फसल की कटाई कब की जाती है

खरीफ की फसलों में मूंग, मूंगफली, गन्ना, सोयाबीन, कपास, चावल, ज्वार, बाजरा और मक्का समेत अन्य शम्मिलित हैं। इन फसलों को ज्यादा तापमान के साथ आद्रता और शुष्क वातावरण की जरूरत होती है। इन फसलों को जून-जुलाई में बोया जाता है। खरीफ की फसल अक्टूबर माह तक पककर तैयार हो जाती है। सर्द‍ियां आरंभ होने से पहले अक्‍टूबर तक इन फसलों की कटाई चालू हो जाती है।
अप्रैल माह में उद्यान फसलों से सम्बन्धित आवश्यक कार्य

अप्रैल माह में उद्यान फसलों से सम्बन्धित आवश्यक कार्य

अप्रैल माह में बहुत सी ऐसी फसले है जिनका उत्पादन कर किसान आर्थिक लाभ उठा सकता है। लाभ कमाने के लिए किसान को इन सभी फसलों पर विशेष रूप से ध्यान देना होगा। 

  1. अप्रैल माह में नींबूवर्गीय फलों को गिरने से रोकने के लिए 2 ,4 डी के 10 पी पी एम को 10 मिली पानी में मिलाकर छिड़काव करें 
  2. बरसात के मौसम में लगाए गए बागों और अन्य आँवला जैसे पौधो की देखभाल करते रहें। पौधो में नराई - गुड़ाई और सिंचाई जैसे कार्यों का विशेष रूप से ध्यान रखें। 
  3. अप्रैल माह में बेल और पपीता के फलों की तुड़ाई भी की जाती है।  इसीलिए समय पर इन फलों की तुड़ाई करके बाजार में बेचने हेतु भेज दिए जाने चाहिए। 
  4. आम के पौधे में वृद्धि के लिए समय समय पर सिंचाई और नराई -गुड़ाई जैसे काम करते रहना चाहिए। इसके लिए पोषक तत्वों का भी उपयोग किया जा सकता है। 2  वर्ष के पौधे के लिए 250 ग्राम फॉस्फोरस, 50 ग्राम नाइट्रोजन और 500 ग्राम पोटाश का उपयोग करें। 
  5. रजनीगंधाऔर गुलाब के फूलों की भी बुवाई अप्रैल में की जाती है। इन फूलों में समय समय पर नराई और गुड़ाई जैसे कार्य करते रहना चाहिए। साथ ही इन फूलों में सुखी टहनियों को भी निकाल देना चाहिए। 
  6. गर्मियों के अप्रैल माह में होने वाले फूलों जैसे पोर्चूलाका, कोचिया और जिनिया पर विशेषकर ध्यान दें। सिंचाई और नराई -गुड़ायी से सम्बंधित सभी कार्य समय समय पर करते रहना चाहिए। 
  7. पॉपुलर के पौधो पर अच्छे से निगरानी रखें। पॉपुलर के पौधों में दीमक कीट का ज्यादा प्रकोप होता है। इस कीट के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए क्लोरपाइरीफोस का पौधो पर छिड़काव करें। 
  8. अप्रैल माह में ग्लोडियोलस फूल की तुड़ाई की जाती है। फूल को तोड़ने के बाद कुछ दिनों के लिए छाया में अच्छे से सुखाए। उसके बाद फूलों से मिलने वाले बीज को 2 % मैंकोजेब पाउडर से उपचारित करें। 
  9. आम के फलों को गिरने से रोकने के लिए ऍन ऍन ऐ के 15 पी पी एम घोल का छिड़काव करें। साथ ही आम के फलों का आकर बढ़ाने के लिए 2 % यूरिया के घोल का छिड़काव करें।